अपंगता-विकलांगता का शिकार सोनभद्र

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सोनांचल में दूषित पेयजल की समस्या गम्भीर रूप ले चुकी है। नक्सल प्रभावित चोपन, दुद्धी, म्योरपुर व बभनी ब्लाक में यह समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। पानी में 8 प्रतिशत तक पहुंची फ्लोेराइड की मात्रा से हड्डिया टेढ़ी हो जा रही हैं। चोपन ब्लाक के रोहनिया दामर, नरोइया दामर, कुड़वा, पड़वा व कोदवारी गांव के ग्रामीण अब भी फ्लोराइ युक्त पानी पीने को विवश हैं।

आप, भले ही यहां पर पानी छान कर पी रहे हों या आधुनिक फिल्टर का इस्तेमाल कर रहे हों, लेकिन इसके बावजूद आपके गिलास में पारा प्रवेश कर रहा है। यानि आप पानी के हर घूंट के साथ मरक्यूरी का सेवन कर रहें हैं। ये मरक्यूरी यानि पारा आपके शरीर को अन्दर से खोखला कर रहा है। इस आसन्न गम्भीर खतरे के बावजूद जिम्मेदार एजेंसिया सतर्क नहीं हुयी हैं।

पानी में पारे की बात नहीं बल्कि पर्यावरण क्षेत्र के विशेष जानकर कर रहे हैं। इनके द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत रिपोर्ट में समुचे सोनभद्र-सिंगरौली क्षेत्र के पानी का जो अध्ययन किया गया वो इस बात की ओर साफ इशारा कर रहा है कि यहां का पानी अमृत नहीं जहर के समान होता जा रहा है।

आम तौर पर पानी में 1.5 प्रतिशत फ्लोराइड पाया जाता है लेकिन पड़वा कोदवारी गांव के भूगर्भ जल में 8 प्रतिशत तक फ्लोराइड की मात्रा आंकी गयी है। पीने के पानी में फ्लोराइड की अधिकता के कहर से इनकी हड्डियां कमजोर होकर मुड़ जाती हैं। कमर झूक जाती है, हाथ-पैर में विकृति आ जाती है, दांत भी पीले पड़ने लगते हैं। प्रदेश सरकार एवं जिला प्रशासन द्वारा करोड़ों रूपये खर्च करने के बाद भी ग्रामीण लोगों को एक बूंद स्वच्छ पानी नसीब नहीं हो पा रहा है।

जिले के रोहनिया दामर जैसे तमाम गांव हैं जहां अब भी ग्रामीण फ्लोराइड प्रदूषित जल पीने को विवश हैं हो हल्ला मचने के बाद जिला प्रशासन में कुछ गांवों में जलशोधक संयत्र की स्थापना किया था लेकिन अनुक्षरण के अभाव में हुआ बेकार हो गया। ग्रामीण गांव में बने पुराने कुएं का पानी पीने को विवश हैं ग्रामीण प्रदूषित पानी पीने की वजह से तिल-तिल कर मरने को विवश हैं। फ्लोराइड पानी का असर यह है कि 35 से 40 वर्ष की उम्र में ही लोग बुढ़ापे की शिकार हो जा रहे हैं।

ब्यूरो आॅफ इण्डियन स्टेंडर्ड के मुताबिक पानी में पारे की मात्रा 0.001 पीपीएम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। जानकारों का कहना है कि अमेरिकन और अन्य दूसरें देशों की एजेंसियों ने तो इसे भी भयावह माना है उनके अनुसार पीने के पानी में किसी भी तरह से पारे की उपस्थिति यानि मनुष्य ही नहीं प्राणियों के लिये भी जहर है।

ख्यातिलब्ध पर्यारणविद् सुनिता नारायण ने लगभग दो साल पहले दी अपने रिपोर्ट में सोनभद्र और सिंगरौली क्षेत्र के पानी में पारे की उपस्थिति सहित अन्य हैबीमेटल्स के बारे में रेखांकित किया है। उन्होंने ने माना है कि पानी में पारे की मौजूदगी बेहद खतरनाक है दूसरी ओर कुछ वर्षों पूर्व केन्द्र सरकार के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कराये गये अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ था कि पानी में पारा मौजूद है।

सुगन्धा जुनेजा की प्रकाशित पुस्तक में अनपरा, चिल्काडाड़ के के आस-पास लिये गये सेम्पल में पारा 0.0003 से 0.026 पीपीएम होने की बात कही गयी है। कई स्थानों पर भूजल के सेम्पल में 0.0008 और 0.0003 पीपीएम पारा मिला। फ्लोराइड भी 0.1 पीपीएम की अपने निर्धारित मात्रा से बहुत ज्यादा 2.1 पीपीएम तक मिला। रिहन्द और ओबरा डैम में फ्लोराइड के साथ आर्सेनिक की मात्रा की व्यापक पैमाने पर मिली।

पाॅवर प्लान्ट से निकल रहे कोयले की फ्लाइऐश ही पारे की मुख्य वजह है। कोयले के जलने के बाद बना पारा पाॅवर प्लान्ट कम्पनियों के उच्चस्तरीय ट्रीन्टमेन्ट के अभाव में जलाशयों और भूजल में मिल रहा है।

जानकारी के मुताबिक वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट फाइल एमसी मेहता की गयी थी जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश प्रदूषित नियंत्रण बोर्ड को स्टडी कर डिटेल रिपोर्ट देने को कहा था। इस बीच पर्यावरविदों ने जो तथ्य रखे जो काफी चैकाने वाले थे। वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर यूपी को निर्देश दिये तो उ.प्र. सरकार ने डिटेल अध्ययन कराने से ही हाथ खड़े कर दिये। सोनभद्र के कुछ स्थानों में फ्लोराइड का ट्रीटमेन्ट कर नये हेंडपंप लगाने की औपचारिकता बस की गयी। दूसरी ओर मध्य प्रदेश सरकार ने भी सिंगरौली के लिये ऐसा कोई प्रयास नहीं किया जिससे लगे कि यहां के लोगों के प्रति शासन-प्रशासन में कितने संवेदनशीलता है।