जानिए क्या है ‘मदर ऑफ ऑल बॉम्ब’, (MOAB) ? जिसे अफगानिस्तान में गिरा कर अमेरिका ने दिखाया तबाही का मंज़र

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नई दिल्ली : अमेरिका ने गुरुवार (13 अप्रैल) को अफगानिस्तान पर अबतक का सबसे बड़ा गैर परमाणु बम गिराया। इसके जरिए आतंकी संगठन आईएसआईएस (ISIS) को निशाना बनाने की बात कही गई थी। इसके लिए GBU-43 बम का प्रयोग किया गया। जिसको ‘मदर ऑफ ऑल बम’ (MOAB ) नाम दिया गया। हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्होंने अफगानिस्तान में बम गिराए जाने की अनुमति दी थी। ट्रंप ने इस अभियान को अत्यंत सफल करार दिया था।

वैसे तो इस बम को सैन्य भाषा में GBU-43/B मैसिव ऑर्डिनेंस एयर ब्लास्ट (MOAB) के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसके वजन और इसके आकार के कारण इसे सभी बमों की मां या फिर मदर ऑफ ऑल बॉम्बस भी कहा जाता है।

अफगानिस्तान में आईएस आतंकियों की सुरंगों को निशाना बनाकर गिराए गए इस सबसे बड़े गैर परमाणु बम के कारण विध्वसंक तबाही मची है। इस कार्रवाई के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यह सफल अभियान रहा और हमें सेना पर गर्व है। चलिये आपको बताते हैं कि इस बम को ‘मदर ऑफ ऑल बॉम्स’ का नाम क्यों दिया गया है और इसे कैसे इस्तेमाल किया जाता है?

 

दरअसल MOAB को दुश्मन में मनोवैज्ञानिक डर पैदा करने के मकसद से बनाया गया था। हालांकि गुरुवार को अफगानिस्तान पर गिराए जाने से पहले इसे किसी देश पर इस्तेमाल नहीं किया गया था। खबर के मुताबिक, अफगानिस्तान के नंगरहार के जिस इलाके में बम को गिराया गया वहां 300 मीटर का गड्ढा हो गया है। MOAB के जालीदार पंख होते हैं जो गिराए जाने के बाद हवा में इसके वजन को कंट्रोल करते हैं। यह इतना बड़ा है कि इसे केवल एक बड़े विमान से ही गिराया जा सकता है।

इस बम को पैलिट (पट्टी के आकार का स्टैंड) पर रखा जाता है। बम को विमान से बाहर निकालने के लिए पैलिट को पैरशूट की मदद से गिराया जाता है। पैरशूट द्वारा पैलिट को खींचे जाने से बम उससे अलग हो जाता है अपने टारगेट पर जाकर गिरता है। यह तेजी से आगे बढ़ता है और सैटलाइट की मदद से इसे आंशिक रूप से निर्देशित किया जाता है। इसमें जमीन से छह फीट ऊपर धमाका किया जाता है ताकि धमाके से होने वाली तबाही का दायरा ज्यादा से ज्यादा हो। इस बम को गिराने का मकसद बड़े लक्ष्यों को तबाह करना या जमीन पर बड़ी सैन्य शक्ति या हथियारों के बेड़े को नुकसान पहुंचाना होता है। इसका धमाका 11 टीएनटी बमों के धमाके के बराबर होता है। दूसरे विश्वयुद्ध में जापान के हिरोशिमा पर जो न्यूक्लियर बम गिराया गया था उसमें 15 टन टीएनटी विस्फोटक था।

अमेरिका ने साल 2003 में इराक युद्ध के दौरान MOAB बम का टेस्ट किया था, लेकिन इसे किसी देश पर पहली बार इस्तेमाल किया गया है। MOAB बम 30 फीट लंबा और 40 इंच चौड़ा होता है और इसका वजन 9500 किलो होता है। यह वजन हिरोशिमा पर गिराए गए बम के वजन से ज्यादा है। इससे होने वाले धमाके से हर दिशा में एक मील तक के इलाके को नुकसान पहुंचता है। हालांकि परमाणु बम नहीं होने की वजह से इससे कोई रेडिएशन नहीं फैलता और इसके विध्वंस की सीमा भी परमाणु बम के मुकाबले काफी कम थी।

 

 

MOAB बम में धमाका होने के कुछ ही सेकंडों में सुरंगों और सैकड़ों फीट के दायरे में ऑक्सिजन खत्म हो जाती है जिससे वहां घुटन पैदा हो जाती है, इसकी लहर इतनी विध्वंसक होती है कि बम के दायरे में आने वाले हर जीव के फेफड़े फट जाते हैं। धमाके की आवाज के साथ एक तीव्र रोशनी निकलती है और एक विध्वंसक लहर एक मील तक अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाती है। इसके दायरे में आए लोग अधिकतर मारे जाते हैं। कानों से खून निकलने लगता है। धमाके के दबाव से अंदरूनी अंगों को नुकसान पहुंचता है। इलाके के पेड़ और इमारतें ढह जाते हैं।

सुरंगों के अंदर 8500 किलो से ज्यादा के दबाव के साथ हुए धमाके में वे तबाह हो जाती हैं और उसमें बैठे लोगों का वही हाल होता है जो आईएस के आतंकियों का हुआ। अगर कोई व्यक्ति बच जाए तो हमेशा के लिए सदमे में रहता है। MOAB को थर्मोबैरिक (गर्मी और दबाव पैदा करने वाला) कैटगरी का बम कहा जाता है। इसमें H6 विस्फोटक होता है जिसमें ऐल्युमिनियम मिला होता है। इससे दो स्टेज में धमाके होते हैं। पहले धमाके में ज्वलनशील ऐल्युमिनियम की धूल फैल जाती है और दूसरा धमाका सुरंग से ऑक्सिजन को सोख लेता है। इन दोनों धमाकों से जबर्दस्त अंदरूनी नुकसान पहुंचता है। कान, फेफड़े जैसे अंगों को अधिक नुकसान होता है।