क्यों मोदी राज में जा रहीं नौकरी? बेरोजगारी की कागार पर 56 हजार IT कर्मचारी

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नई दिल्ली : भारत में मोदी सरकार के आने के बाद देश में रोजगार बढ़ाने और बेरोजगारी दूर करने के वादे किये गये थे। नई नौकरी पैदा करने की बात कही गई थी लेकिन देश के IT सेक्टर में तो नौकरियों पर ही तलवार लटकी है।

विप्रो, इंफोसिस, टेक महिंद्रा और कॉग्निजेंट जैसी 7 बड़ी आईटी कंपनियां भारत में काम कर रहीं हैं। यह कंपनियां अपने 56,000 कर्मचारियों को बाहर करने की प्लानिंग कर रही हैं। पिछले साल की तुलना में इस साल कंपनियों में छटनी के माध्यम से निकाले जाने वाले कर्मचारियों की संख्या दोगुनी हो गई है। अंग्रेजी अखबार के मुताबिक इन सात कंपनियों में काम कर चुके और काम कर रहे 22 बड़े अधिकारियों के इंटरव्यू के बाद यह संख्या निकलकर आई है।

इनमें इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, यूएस बेस्ड कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी सॉल्यूशन, डीएक्ससी टेक्नोलॉजी और फ्रांस बेस्ड कैप जैमिनि कंपनी शामिल हैं। अंग्रेजी अखबार लाइवमिंट की रिपोर्ट के मुताबिक इन सभी कंपनियों ने छटनी के लिए पहले ही जमीन तैयार कर ली है। इन 7 कंपनियों में 1.24 मिलियन कर्मचारी काम करते हैं।

कंपनियां 2017 में 4.5 फीसदी कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की प्लानिंग कर रही हैं। इन कंपनियों ने अपने काफी कर्माचारियों को कम रेटिंग दी है। कॉग्निजेंट ने अपने 15,000 कर्मचारियों को सबसे निचली कैटेगरी (चौथी श्रेणी) में रखा है। वहीं इंफोसिस ने अपने 3,000 सीनियर मैनेजरों को सुधार की जरूरत वाली श्रेणी में रखा है।

डीएक्ससी टेक्नोलॉजी ने अपना तीन साल का प्लान बनाया है। वह तीन साल में देश में अपने ऑफिसों की संख्या 50 से 26 करने की तैयारी में है। कंपनी में 17,0000 कर्मचारी काम करते हैं। इस साल के आखिर तक कंपनी अपने 5.9 फीसदी या 10,000 कर्माचारियों को बाहर का रास्ता दिखा सकती है।

सभी कंपनियां अभी इस प्लानिंग में हैं कि परफोर्मेंस की समीक्षा को कैसे और कठोर बनाया जाए, जिससे कि छटनी के माध्यम से ज्यादा कर्मचारियों को बाहर किया जा सके। पिछले कुछ सालों की बात करें तो परफोर्मेंस रिव्यू के आधार पर भारतीय आईटी कंपनियों में 1 से 1.5 फीसदी लोगों की नौकरी जाती थी।

वहीं भारत में विदेशी कंपनियों में 3 फीसदी लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ता था। इस साल भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा कर्मचारियों को निकालने का आंकड़ा 2 से 6 फीसदी तक है। रिपोर्ट के मुताबिक इस बात से इनकार किया गया है कि बढ़ती छटनी किसी संकट का संदेश दे रही है। मूल्यांकन प्रक्रियाओं के और कठोर होने को बढ़ती छटनी के लिए जिम्मेदार ठहराया है।