नक्सलवाद को हलके में लेती दिख रही है हमारी सरकार

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naxalitesनक्सलवाद के बढ़ते खतरे को लेकर डॉ. मनमोहन सिंह नक्सली समस्या को देश की आन्तरिक सुरक्षा पर सबसे बड़ा खतरा करार चुके हैं मगर ६ साल गुजरने के बावजूद भी प्रशासन द्वारा इस खतरे पर लगाम लगाने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाये गए हैं । केंद्रीय ग्रह राज्य मंत्री जीतेन्द्र सिंह जी ने राज्यसभा में बताया है की राष्ट्रीय राजधानी के ९ ने से ७ जिले नक्सल के । भाव में आ गए है । देश की राजधानी के लगभग ७८% भाग में नक्सलवादियों का सक्रिय रहना मिल्ट्री गुप्तचरों की गोपनीय रपट की पुष्टि करता है। जिसके अनुसार नक्सलवादी २०५० तक दिल्ली के तख़्त पर कब्ज़ा करना चाहते है। नक्सलियों का जाल उत्तर भारत में तेजी से फैल रहा है वर्तमान समय में ५०,००० अनुमानित नक्सलियो के हथियार बंद जत्थे सक्रिय है जिन्हें रोकने में केंद्र व राज्यों की सरकारे व सुरक्षा बलों के भरी जत्थे भी नाकाम साबित हो रहे है। अपने मनसूबे के तहत नक्सलियों ने बहुत सोच समझकर अपनी रणनीति तयार की है। वे न केवल हिंसक हमलों के लिये सेनाए तयार करने में वस्त हैं। बल्कि वे लोगों के दिलों दिमाग पर शासन कर छात्रए, न्यायपालिका, मीडिया, दलित, मजदुर वर्ग, किसान व युवाओं को अपनी विचारधारा से । भावित करना भी उनकी योजना का सर्व प्रथम उदेश्य है।

केंद्रीय खुफिया गुप चरों की रपट के मुताबिक दिल्ली में अपने पैर पसार नक्सली विश्वविद्यालय, सांस्कृतिक संगठनो और अन्य ठिकानो में अपना वर्चस्व स्थापित करने में कामयाब रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आने वाले पड़ोसी राज्यों के इलाके में वे बारूदी सुरंगे बिछाने, गोली चलाने और बम बनाने का परीक्षण भी कर रहे हैं। यह कहना भी गलत नहीं होगा की मओवादियो के पास रक्षा मंत्रालय से भी अधिक विशाल वे तकनिकी । योगशाला है जहा निरंतर नए-नए हथियारों के निर्माण का कार्य भी चल रहा है। परन्तु । शासन नींद से जागने का नाम नहीं ले रहा। योजना आयोग आज भी नक्सलवाद को राजनीतिक आन्दोलन मानता है और उससे राजनितिक दाव पेच से ही निपटने के मनसूबे रखे हुए है। अब प्रश्न यह उठता है कि जो लोग अपनी बुनयादी आवश्यकता पूरी करने में तत्पर नहीं थे आखिर वो भुकड़ बंदूके कहा से ले आये ? नक्सली पूरी तरह से माओ की इस विचारधारा से तालुक रखते हैं कि राजनीती केवल बन्दुक के जोर पे की जाती है। नक्सलियों ने पड़ोसी राष्ट्रों में सक्रिया अत्तंक्वादी संघटनाओं से भी गहरे सम्बन्ध स्थापित कर लिए हैं। नेपाल के माओवादी, श्री लंका के, बंगलादेश के आतंकवादी संघठनो,चीन, म्यांमार पाकिस्तान, वियतनाम तथा थाईलैंड के हथियार सप्लायर नक्सल आन्दोलन के खुनी खेल के ली पश्चिम बंगाल, ओड़िसा और आंध्र । देश के समुंदरी मार्गो के जरिए लाल आतंक को हथियार पर्याप्त करा रहे है।

केंद्रीय खुफिया गुप्तचरों की रपट के मुताबिक नक्सलियो के निशाने पर उद्योगीकरण हमेशा रहता है। पश्चिम बंगाल के नंदी ग्राम और सिंगुर में जो हुआ उससे यह स्पष्ट हो जाता है की नक्सली बेरोजगारी को बढावा दे अपने आन्दोलन को और विकराल रूप । दान करना चाहते है। इस । कार के नक्सली हिंसक आन्दोलन क्रियायों के कारण ही टाटा को अपनी नेनो कार की फैक्ट्री को सिंगूर से हटाकर गुजरात ले जाना पड़ा है। जिस तरह से दिल्ली और उसके आस पास के राज्यों में नक्सलियों का हस्तक्षेप बढ़ रहा है ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी का उद्योगीकरण कितना सुरक्षित है इस पर प्रश्न चिह्न बना हुआ है ? हाल ही में मानेसर के मारुती उद्योग में खेला गया खुनी खेल नक्सलियों की मेहरबानी का नतीजा भी हो सकता है, परन्तु अभी तक इस बात की कोई पुष्टि नहीं हो पाई है। वर्तमान समय में भारत के ६२६ में से लगभग २०० जिले नक्सल । भावित है। सरकार का दावा है की नक्सलवाद को कम करने में काफी हद तक उन्हें कामयाबी हासिल हुए है और ५० जिलों में नक्सली हिंसा में गिरावट आयी है परन्तु अभी भी बहुत से जिले नक्सलवाद से बुरी तरह से पीड़ित है। ग्रह मंत्रालय का कहना है की कर्नाटक का नाम नक्सल । भावित राज्यों की सूचि से हटा दिया गया है वहीँ पश्चिम बंगाल का नाक्स्ल्वारी जिला, पश्चिमी मिदनापुर, छत्तीसगढ़ का दंतेवाडा और महारास्ष्ट्र का गडचिरोली देश में सर्वाधिक नक्सल प्रभावित छेत्र है। पश्चिम विहार में जहाँ २००९ से २०११ के दोरान ३६० लोग मरे गए थे, वहीँ इस वर्ष जुलाई तक हिंसा का एक भी वख्या सामने नहीं आया। इससे अवधि में दंतेवाडा में २८० लगों की हत्या की तुलना में इस वर्ष १३ लोगों की हत्या हुई है। महारास्ष्ट्र के गडचिरोली में बीते तीन वर्षो में ४०० से अधिक जाने जा चुकी है ओडिशा और आंध्र । देश में भी नक्सली हिंसा में कोई कमी नहीं आयी है जो यह साफ करता है की सरकार की निति नक्सल को खत्म करने में पूरी तरह से असफल ही रही है। १९६७ से आज तक ६,३७७ आम नागरिक, २,२१३ नक्सली तथा २,२८५ सुरख्षा बल भी मारे जा चुके है, न जाने कितने और मरे जाने है।

नक्सलवाद अब एक आन्दोलन मात्र न रह कर गरीब और भुखमरी से पीड़ित जनता का धर्म बन चूका है और भ्रष्ट । शासन और नेताओ में इस स्थिति से निपटने का साहस जरा भी नहीं सुरक्षा बलों और शक्ति के बल से बड़े से बड़ा युद्ध तो जीता जा सकता है। परन्तु समस्या का अंत नहीं किया जा सकता नक्सल केवल गरीब, बेरोजगार लोगों के दिल और दिमाग पर शासन करते हैं, यदि नक्सल । भावित क्षेत्र में विकास कार्य करके, रोजगार प्रदान करके तथा गरीब व दुखयारी जनता का दिल जितके ही नक्सलवाद का अंत किया जा सकता है यदि सुरक्षा बल का सहारा लेकर इसका अंत किया जा सकता तो नक्सल का नमो निशान कब का केवल इतिहास के पानो में दर्ज हो कर रह जाता। नक्सल । भावित क्षेत्र में पुलिसे और पंचायते अब सरकार का साथ छोड़ नक्सल का साथ देने लगे है और देर सवेर ये स्थिति दिल्ली में भी होने वाली है।