भारत में महिला सशक्तिकरण का सच

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आजकल ये भारी भरकम शब्द ‘महिला सशक्तिकरण’ हम हर किसी के मुँह से सुन रहें हैं। आखिर क्या है ये महिला सशक्तिकरण ? महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि हम ‘सशक्तिकरण’ से क्या समझते है। ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें ये योग्यता आ जाती है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो। यहाँ अपनी आजादी, अपने फैसले , अपने अधिकार , अपने विचार , इन सबका अधिकार महिलाओ को देना ही “महिला सशक्तिकरण” है। आज समाज के सभी क्षेत्र में महिलाएँ और पुरुष के लिये बराबरी लाना बहुत ही जरूरी है।

महिलायें हर कार्य में सक्षम है। वह पुरूषों से ज्यादा समय तक मेहनत करती है तथा पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मेहनती होतीं है। इसीलिये महिलाओ को खुद के फैसले लेने का बराबर का हक है। वह फैसले चाहे उसके खुद के लिये हो , उसके परिवार के लिये हो , समाज के लिये हो, या देश के लिये हो । भारत के संविधान में भी महिलाओं को बराबरी का हक देने के लिये कानून उपस्थित है।

 

शहरों तक सिमित है महिला सशक्तिकरण

दुर्भाग्य की बात है कि नारी सशक्तिकरण की बातें और योजनाएं केवल शहरों तक ही सिमटकर रह गई हैं। एक ओर बड़े शहरों और मेट्रो सिटी में रहने वाली महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रुप से स्वतंत्र, नई सोच वाली, ऊंचे पदों पर काम करने वाली महिलाएं हैं, जो पुरुषों के अत्याचारों को किसी भी रूप में सहन नहीं करना चाहतीं। वहीं दूसरी तरफ गांवों में रहने वाली महिलाएं हैं जो ना तो अपने अधिकारों को जानती हैं और ना ही उन्हें अपनाती हैं। वे अत्याचारों और सामाजिक बंधनों की इतनी आदी हो चुकी हैं की अब उन्हें वहां से निकलने में डर लगता है। वे उसी को अपनी नियति समझकर बैठ गई हैं।

हम खुद को आधुनिक कहने लगे हैं, लेकिन सच यह है कि मॉर्डनाइज़ेशन सिर्फ हमारे पहनावे में आया है लेकिन विचारों से हमारा समाज आज भी पिछड़ा हुआ है। आज महिलाएं एक कुशल गृहणी से लेकर एक सफल व्यावसायी की भूमिका बेहतर तरीके से निभा रही हैं। नई पीढ़ी की महिलाएं तो स्वयं को पुरुषों से बेहतर साबित करने का एक भी मौका गंवाना नहीं चाहती। लेकिन गांव और शहर की इस दूरी को मिटाना जरूरी है।

समाज से लिंग भेद मिटाना है जरुरी 

वक़्त आ गया है कि अब समाज से लिंग भेद को ख़त्म करने का। महिलाओ को स्वम की खास पेह्चान बनानी होगी। पंडित नेहरू ने कहा था – ” लोगों को जगाने के लिये “, महिलाओ का जागृत होना जरूरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है , परिवार आगे बढ़ता है , गाँव आगे बढ़ता है , और देश विकास की और बढ़ता है।

लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाने की जरुरत

महिलाओं को समाज में मज़बूत बनाने से पहले ऊन सभी छोटी सोच को विराम लगाना बहुत जरूरी है जिससे महिलाओ के आस्तित्व को खतरा है। जैसे घरेलू हिंसा , बलात्कार , भ्रूण हत्या , दहेज प्रथा , लिंग भेद , अशिक्षा, आदि । महिलाओ की समस्या का समाधान करने के लिये, महिला आरक्षण बिल – 108 वा संविधान संशोधन का पास होना बहुत जरूरी है । ये संसद मॆ महिलाओ की 33% हिस्सेदारी सुनिश्चत करता है।

महिलाओं में है समाज को बदलने की ताकत

महिलाओ में इतनी ताकत होती है की वो समाज मैं बहुत बदलाव ला सकती है। वह किसी भी समसयासमस्या का समाधान पुरूषों से बहतर कर सकती है। वास्तव मॆ सशक्तीकरण लाने के लिये महिलाओ को आगे आना पड़ेगा और अपने अधिकारों से अवगत होना पड़ेगा। जरूरत है की हम महिलाओ के खिलाफ अपनी पुरानी विचार धाराएँ बदले।

इस देश में आधी आबादी महिलाओं की है इसलिये देश को पूरी तरह से शक्तिशाली बनाने के लिये महिला सशक्तिकरण बहुत जरुरी है। उनके उचित वृद्धि और विकास के लिये हर क्षेत्र में स्वतंत्र होने के उनके अधिकार को समझाना महिलाओं को अधिकार देना है। महिलाएँ राष्ट्र के भविष्य के रुप में एक बच्चे को जन्म देती है इसलिये बच्चों के विकास और वृद्धि के द्वारा राष्ट्र के उज्जवल भविष्य को बनाने में वो सबसे बेहतर तरीके से योगदान दे सकती है। महिला विरोधी पुरुष की मजबूर पीड़ित होने के बजाय उन्हें सशक्त होने की जरुरत है।