मोसुल के नियंत्रण खोने से कमजोर पड़ा इराकी प्रसाशन

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iaraki parasanअलकायदा से अलग हुए चरमपंथी गुट इस्समिक स्टेट इराक एवं सीरिया (आईएस आईएस) रक्षक ने प्रमुख खतरों पर कब्जा जमा लिया है। आईएस आअईएस द्वारा 10 जून को मोसुल में कब्जा किये जाने के बाद पूरे इराक में जोरदार अटका लगा दी है। खबर के मुताबिक इस अभियान में हजारो इराकी मारे गये है।

मोसुल के नियंत्रण खोने से इराकी प्रसाशन कमजोर दिख रहा है। इस तरह से नूरी अल मलूखी सरकार लडखडाती नजर आ रही है। इसके तीन मुख्य कारण है। पहला निनेवांह प्रान्त के एक सिया अधिकारी को बगदाद में एक सैन्य तिकडी में अपराध के मामलो में दोषी पाया गया था। प्रन्तु मलूकी सरकार ने इस पर कोई कार्येवाही नही की।

यह आरोप तब लगाये गये जब वो अपने अधिकारिक दायित्व से विदा हो रहे थे। इसके बावजूद उन्हें सुन्नी बहुल प्रान्त का प्रमुख बना दिया गया इससे सुन्नी अल्पसंख्यको में खलबली मच गयी। इस कारण अली की सरकार के कारण बहुसंख्यको के प्रति पक्षपात से सुन्नियों के बीच की आपदा गुजरी हालांकि इराक संकट की पूर्ण ब्याख्या की महज इस तरह की पूर्ण वर्गीय नीतिंयो के आधार पर नही की जा सकती है।

इस क्रम में दूसरी समस्या से लगातार अराजकता से गुजर रहे सीरिया में अमेरिका की भूमिका है। 2003 में अमेरिका ने आक्रमण के फलस्वरूप् वहां पर अपना स्ािान बनाया। इस दौरान प्रसाशिन ढांचे में परिवर्तन हुए उसका मुख्य कारण अदगात हुसैन की सत्ता की जडो को खत्म किया जा सके। लेकिन ये धारणा गलत साबित हुई कि सद्दाम के विश्ववस्त लोगो को सत्ता के बाहर किये बगेैर इराक का विकास नही किया जा सकता है।
इसके ठीक उल्टा मलीकी सरकार ने सत्ता में आने के बाद वर्गीये पक्षपात का दृढता से समर्थन किया और इसके प्रसानिक ढांचो में सियाओ को भरा गया यहां तक की सुन्नियों के साथ अपराध में दोषी सिया अधिकारियों के खिलाफ कोई कडे कदम नही उठाये गये। मलीकी सरकार को अमेरिका  के साथ स्टेटस आफ कोर्स एग्रीमेेन्ट में विफलता की थी कीमत चुकानी पडी इराक मे अमेरिकी सैन्य मैजूदगी से मलीकी चिन्तत थे।

क्येाकि इससे उनके सासन की वैधता प्रभावित हो रही थी। अपने अभियानो में अमेरिकी सैनिको को मिली खुली छूट उन्होने कठोर विरोध किया। हालाकिं चिन्तांए जायज थी इसी तरह से मिली सुरक्षा ठेकेदारो की भूमिका बढने और  सरकारी गतविधियों में नियन्त्रण व संतुलन खत्म होने से अमेरिका ने पूर्ण रूप से अपनी सेनाओ को वापस बुला लिया लेकिन समस्या का तीसरा पहलू सीरिया के हालात बने।

सीरिया के अराजक हालात मे पैदा हुूई राजनैतिक सून्यता के चलते आईएस आईएस और भी मजबूत हुआ। उधर असद की सत्ता के खिलाफ अधिकांश सुन्नी आतंकी संगठन को सऊदी से संगठन मिला उत्तर पूर्वी सीरिया के इलाके में लूटे गये तेल के धन से आईएस आईएस ने खुद को और अधिक मजबूत किया इसके अलावा सीरिया  इराक सीमा की कमजोर हालत और नाखुश जनता के वर्ग में भी उन्हें इराक में घुसने और बडी येाजना को अंजाम देने के लिए मदद की ।

जानकारी के अनुसार आईएस आईएस ने बगदाद से महज कुछ किलो मीटर ककी दूरी पर इराकी सुरक्षा बलो से लोहा ले रहा  है। तो क्या इराकी राजधानी का पतन निश्चत है। ऐसा नही होगा बगदाद मे सिया की संख्या ज्यादा है। बगदाद की तरफ आने में बडे प्रतिरोध का सामना करना पडेगा। जानकारी के मुताबिक आईएस आईएस की संख्या 6000 से 8000 के बीच है। सदि बगदाद की आबादी उन्हें समर्थन नही देती तो यह बडी संख्या नही है।

सिया लोगो ने अपने पवित्र स्थानो कर्बला, नजक की हत्या के लिए हथियार उठाना प्रारम्भ किया है। सिया धर्मगुरू अयातुल्लाह अली सिस्हानी ने भी अपने बुराइयों को इराक की रक्षा के लिए हथियार उठाने को कहा। उल्लेखनीय है अमेरिका आक्रमण के समय और फरउवरी 2006 में समारा की स्वर्ण मस्जिद के हमले के समय पर भी उन्होने ऐसा आग्रह नही किया था। तेजी से बदल रह हालात मे इराक की भूमिका महत्वपूर्ण है।

विशेषको के मुताबिक इरान एक वाह्य साबित है जो इराक को नियंत्रित के बाहर जाने से रोक सकता है। इरानी राष्ट्रपति ने आईएस आईएस को एक वर्वर संगठन करार देते हुए कहा की इरान इराक को सामाजिक मदद दे सकता है। उन्होने बगदाद में 500 इरानी सैनिको की मैजूदगी का खंडन किया हैं। इरान के सेना कामांडर जनरल गासेम सुलेमानी बगदाद में इराकी बलो को मदद दे रहे है।

ऊधर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने बडे पैमाने में सैन्य हस्ताक्षेप में इंकार करतें हुए अपने 300 संरक्षा सलाकारो को बगदाद रोकने की बात कही। खास बात यह है कि अमेरिका सभी सवालो का जबाव नही दे सकता है। लेकिन इराक के क्षत्रिये अखण्डता की रक्षा कर सकता है। इसके लिए ओबामा ने सेना को विकल्प पर काम करने को कहा है। अब वाशिगटन में सुन्नी आतंकियों को समर्थन दे रहे सऊदी अरब को मनाने के लिए अधिक प्रयास करना होगा। मोसुल में 40 भारतीयों के अपहरण भारत को इस समस्या के निकट ले जाता है।

इराक में 1800 भारतीय नागरिको की सुरक्षा की चिंता है। सऊदी अरब भारत का सबसे बडा तेल आपूर्ति करता है। इसके बाद इराक है इराक है इराक के प्रमुख उत्पादन केंन्द्रो में वसरा वदंरगाह एक है जो दक्षिण में एक है। उम्मीद है किस संकट से भारत का तेल ढाचा प्रभापित नही होगा। भविष्य में तेल की कीमतो को लेकर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव पडेगा। केंद्रिये वित सवित ने बताया की घबराने की जरूरत नही है क्योकि सरकार पूरे घटना को देखते हुए सजग व सर्तक है। यह एक अच्छी बात है यह मसला बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि मलीकी सरकार जिस प्रकार से संकट से निकलती है और इरान जैसा रचनात्मक भमिका निभाता है।