माँ हिडिम्बा देवी

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hadimba devi manali kulluमाँ हिडिम्बा देवी पूर्व में एक देवी अप्सरा योगिनी शक्ति थी। कृष्ण भगवान की माया के कारण इन्हें विलम्ब होने पर श्रापित किया गया था कि तू राक्षसी हो जा पुनः माँ देवी ने जब स्तुति की और पूछा कि आखिर कब मुझे श्राप से मुक्त होना है। तभी देवताओं ने कहा कि हे देवी कलियुग में जब पाण्डवों से तुम्हारा मिलन होगा, तब तुम भरतखण्ड के कुल्लू मण्डल में स्थित जालन्धर पीठ व्यास नदी के सानिध्य में दंगरी नामक स्थान मनालसु नदी के क्षेत्र मनाली गांव पर विराम वन में एक गुप्त गुफा में माँ देवी महिषासुर मर्दिनी की तपस्या करोगी तब जा कर तुम्हें देवी के रूप में ही माना जाऐगा और तुम कलयुग की सभी दानवी राक्षसी सुष्टि के सभी दुराचारियों का विनाश करोगी।

भक्त जन तुम्हें दुर्गा, काली, क्षमा धात्री माँ के रूप में जानेंगे और तुम भक्त के दुखों का नाश करोगी। महाभारत काल में मां हिडिम्बा को श्राप के कारण राक्षसि रूप लेना पड़ा। जब देवी हिडिम्बा का पाण्डवों से भीम से मिलन हुआ तो माता के भाई हिडिम्ब ने उसका विरोध किया। भीम का कई दिनों तक हिडिम्ब से युद्ध चलता रहा और युद्ध के अन्त में हिडिम्ब की मृत्यु हो गई। उसके बाद देवी हिडिम्बा का भीम से गन्धर्व विवाह हो गया। कुछ समय के उपरांत उनका घटोत्कछ नामक अत्यन्त बलशाली पुत्र उत्पन्न हुआ। फिर पाण्डव वहां से चले गए और माता हिडिम्बा तपस्या में लीन हो गई। घटोत्कछ ने महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मनाली में हिडिम्बा देवी का दूंगरी नामक स्थान महाभारत काल का ऐतिहासिक स्थान है। जहां पर माँ हिडिम्बा ने तप किया था। वह गुफा नुमा शक्ल का स्थान है जहाँ देवी हिडिम्बा के चरण भी है। उसके पीछे माँ देवी महिषासुर मर्दिनी की पाषाण (पत्थर) की मूर्ति है।

मन्दिर के पीछे एक बहुत बड़ी चट्टान है जो माता हिडिम्बा के पिण्डी रूप का प्रतीक है। मन्दिर के कुछ दूरी पर घटोत्कच का स्थान भी स्थित है। सन् 1546 ई. में राजा बहादुर सिंह जब कुल्लू के राजा बने तो सन् 1553 ई. में मन्दिर क पुनः निर्माण किया था। माँ हिडिम्बा देवी के पेला गुरर् श्री तुले राम जी का कहना है कि जो भी इन्सान यहाँ पर अपने दुखः दर्द लेकर आता है माता उसका दुखः को सुख में परिवर्तित करती है। माँ अपने भक्तों की सदा रक्षा एवम् सहायता करती है।

माँ के दरबार से कोई भी खाली हाथ वापिस नहीं जाता है। पर्यटन नगरी मनाली में माँ के मन्दिर का विशेष महत्व है। पर्यटन दूर-दूर से माँ के दर्शन के लिए यहां आते हैं। यहाँ हमेशा मन्दिर हमेशा मन्दिर के द्वार पर दर्शन के लिए भक्तों की लम्बी कतार लगी रहती है।
जयेष्ठ मास की संक्रांन्ति पर माँ के दर्शन का विशेष महत्व है। उस दिन माँ के मन्दिर में भारी भीड़ रहती है।

माँ सबके दिलों की मुरादों को सुनती है और उनको पूरा करती है। माँ के द्वार पर कोई निराश नहीं होता। आज के समय में भी देवी देवताओं में उतनी ही शक्ति है जितनी कि पहले थी। परन्तु आधुनिकता युग के चलते मनुष्य की श्रद्धा में कमी आ गई है। आधुनिकता अच्छी बात है परन्तु इसका अभिप्रायः यह नहीं है कि हम अपनी देवीय संस्कृति का भूल जायें। क्योंकि ये भी हमारी संस्कृति का एम महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।