डस्टबीन में एनजीटी का आदेश

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उत्तर प्रदेश, सोनभद्र: सोनभद्र का दक्षिणांचल क्षेत्र इण्डस्ट्रीयल बेल्ट और पाॅवर हब के नाम से ऊर्जांचल क्षेत्र के रूप में इसकी अपनी एक पहचान है वहीं दूसरी तरफ यह क्षेत्र इन दोनों परियोजनाओं की वजह से सोनांचल की जनसंख्या का एक तीहाई आबादी प्रदूषण की चपेट में है। इन क्षेत्रों के पानी व अनाज में पारा, फ्लोराइड, आर्सेनिक की मात्रा निश्चत अनुमानों से कहीं ज्यादा है। जिसके कारण प्रदूषण की वजह से मौतें ज्यादा हुई हैं। मई, 2014 में एनजीटी की टीम ने इन क्षेत्रों का निरक्षण कर अनेकों परियोजनाओं को पर्याप्त मात्रा में आरओ (रिवर्स ओसमासिस) लगाने का निर्देश दिया था लेकिन परियोजनाओं ने एनजीटी के आदेश को जमीनी स्तर पर नहीं उतारा, आज भी प्रदूषित गांव जहरीले पानी पीकर अपनी मौत की घडि़यां गिन रहे हैं।

हम आपको बताते चलें कि – ‘रिहन्द के पानी के जहरीले होने की पुष्टि केन्द्रीय मृदा अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली, काशी हिन्दू विश्व विद्यालय, वाराणसी और रूढ़की के वैज्ञानिकों द्वारा भी की जा चुकी है। यह मामला संगीन तब हुआ जब रिहन्द जलाशय के आस-पास बसे गांव लभरी, कमरीडाड़, डोंगिया नाला आदि गांवों में वर्ष 2011 में दूषित पानी पीने से चार महीने के अन्दर सामुहिक मौतें हुई थी।

सोनांचल के प्रदूषित ग्रामीण क्षेत्रों में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूबनल) के आदेश के बावजूद एक भी आरओ प्लान्ट नहीं लगाया गया। ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राम प्रधानों द्वारा जिलाधिकारी को पत्र लिखकर परियोजनाओं पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए आक्रोश जाहिर किया। जनपद में आबादी की दृष्टि से सबसे बड़ा ग्रामसभा परासी है (ब्लाक म्योरपुर) जिसकी कुल आबादी 24,000 है तथा क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ा ग्रामसभा कुलडोमरी (ब्लाक म्योरपुर) है। इन दोनों ग्रामसभाओं में एनजीटी के आदेशानुसार ग्रामीणों को पेयजल आपूर्ति के लिये आरओ प्लान्ट लगाना था। अनपरा परियोजना आदि को इन गांवों में आरओ प्लान्ट लगाने के लिये जिम्मेदारी सौंपी गयी थी लेकिन अब तक इन गांवों में एक भी आरओ प्लान्ट न लगने से यहां के ग्रामीणों में काफी आक्रोश है। ग्रामीणों का कहना है कि इस सम्बन्ध में जिलाधिकारी ने परियोजनाओं की बैठक ली थी उस वक्त सभी अधिकारियों ने अपने कार्य की खुद तारीफ कर अपने मुंह मियां मिट्ठू बने थे।

नेशनल ग्रीन टिव्यूनल ने ऊर्जांचल के प्रदूषण पर 13 मई, 2014 को ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा था कि पाॅवर प्रोजेक्टों समेत अन्य उद्योगों के समीप निवास करने वाले गांव में शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिये पर्याप्त क्षमता वाला आरओ प्लान्ट लगाकर पीने का पानी उपलब्ध कराना होगा। यह व्यवस्था उन गांवों में की जायेगी जो प्रोजेक्टों के प्रदूषण से प्रदूषित हैं साथ में एनजीटी की प्रिसिंपल बेंच ने यह भी आदेश जारी किया था कि – ‘किसी भी रूप में औद्योगिक कचरा गोविन्द बल्लभ पन्त सागर (रिहन्द) में नहीं छोड़ा जाना चाहिये इसके लिये पुख्ता व्यवस्था की जाये।’

सिंगरौली क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण पर नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल ने कड़ा रूख अख्तियार करते हुए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के मुख्य सचिवों को भी निर्देशित किया था कि क्षेत्र में स्थापित विद्युत गृहों सहित बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों के माध्यम से प्रदूषण से प्रभावित क्षेत्र में रिवर्स ओसमासिस प्लान्ट लगाकर शुद्ध पेयजल सुनिश्चित कराये जायें। दोनों प्रदेशों के सिंगरौली/सोनभद्र में क्रिटिकल पल्यूटेड क्षेत्रों में प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये सात दिन के भीतर कमेटियां गठित करने के निर्देश भी दिये थे जो प्रभावित क्षेत्रों का सर्वे कर उचित कदम उठाने की बात कही गयी थी परन्तु अभी तक ऐसा हुआ नहीं।

13 मई, 2014 को एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस स्वतंत्र कुमार की पांच सदस्यीय खण्डपीठ द्वारा प्रदूषण के खिलाफ मुहिम चला रहे अधिवक्ता अश्वनी कुमार दूबे की मूल याचिका 276/2013 की सुनवाई के दौरान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगायी थी जबकि वहीं केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता ने स्वीकार किया था कि सिंगरौली क्षेत्र में गम्भीर प्रदूषण की समस्या है तथा गोविन्द बल्लभ पन्त सागर जो क्षेत्रवासियों के लिये पेयजल जरूरतों का मुख्य स्रोत है बुरी तरह विद्युत गृहों की उत्सर्जित राख एवं प्रदूषित डिस्चार्ज से प्रदूषण का शिकार हो रहा है।

जबकि दूसरी तरफ उस समय एडीशनल सालीसीटर जनरल ने इसे रोकने के लिये दोनों प्रदेशों के मुख्य सचिव सहित तमाम जिम्मेदार अधिकारियों के परामर्श किये जाने की बात सामने रखी थी अभी तक इस पर भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है और उस क्षेत्र के निवासी बेतहासा प्रदूषण की मार झेल रहे हैं।

मई, 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल ने सिंगरौली के बन्धौरा स्थित एस्सार के पाॅवर प्रबन्धन को निर्देशित किया था कि वो जल्द से जल्द ऐश पांड में पड़ी राख को समेटने यानि डिस्पोज आॅफ करने का इन्तजाम करें।

इससे पहले जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता में एनजीटी की फुल बेंच ने फरवरी, 2014 को दिल्ली में एस्सार को पाॅवर प्लान्ट बन्द करने के आदेश देने वाली अधिवक्ता अश्वनी दुबे की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस पूरे मामले में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी सात दिन में अपनी स्टेट्स रिपोर्ट दें। जिसमें एस्सार को पहले दिये गये नोटिसों और उसके बाद हुई कार्यवाहियों का ब्यौरा हो। ऐसी ही रिपोर्ट एनजीटी ने एस्सार प्रबन्धन से भी मांगी थी।

एनजीटी ने इस मामले में सुनवाई के लिये अगली तिथि 07 मई तय की थी। उल्लेखनीय है कि श्री दुबे ने तमाम बिन्दुवार हवाला देते हुये ट्रिव्यूनल से कहा कि एस्सार ने प्रदूषण सम्बन्धी मानकों का पालन नहीं किया है, ऐश डाइक नहीं बनाया है और न ही ऐश पांड में जमा हजारो ट्रक राख को हटावाया है। इसके कारण क्षेत्र में लोगों का रहना मुश्किल हो गया है। ऐश डैम का फुटना और नये ऐश डैम का न बनाया जाना व इससे लोगों को हो रही क्षति को देखते हुए इस पाॅवर प्लान्ट को तत्काल बन्द करा देना चाहिये। एनजीटी के निर्देश के बाद एस्सार प्रबन्धन खेमे में खुशी का आलम था क्योंकि प्रबन्धन इस बात से प्रसन्न था कि यायिकाकर्ता की याचिका पर एनजीटी ने प्लान्ट बन्द करने जैसा कोई आदेश नहीं दिया।

जबकि वहीं दूसरी तरफ अपने प्रेस कान्फ्रेन्स के दौरान एस्सार प्रबन्धन ने जारी एक बयान जारी कर कहा था कि वो ऐश पांड से राख हटाने और ऐश डैम बनाने का काम बेहद जल्द पूरा कर सकता है, बशर्ते उसे जिला और पुलिस प्रशासन सहयोग तो दें, लोगों के कारण कम्पनी अपना काम नहीं कर पा रही है। जबकि प्रबन्धन ने यह भी माना था कि वो एनजीटी के हर निर्देश का पालन करेगा।

हम आपको बताते चले कि इससे पहले नेशनल ग्रीन ट्रिव्यूनल के निर्देश पर गठित टीम 09 फरवरी, 2014 की सुबह सिंगरौली परिक्षेत्र के प्रदूषण की हकीकत जानने यहां आई थी। जबकि निरीक्षण के दौरान बलिया नाला में टीम के सदस्य पानी में बह रहे कोयले और काले पानी को देखकर भौंचक रह गये। टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने कोयला अधिकारियों की ओर मुखातिब होते हुए कहा – ‘हाऊ सैड ? यह है आपका वाटर ट्रिटमेन्ट।’ कोयला खदाना दुधीचूआं की ओर रवाना होते समय टीम ने बलिया नाला की दुर्गत भी देखी। खान अधिकारियों द्वारा ट्रिटेड वाटर ही नाले में छोड़े जाने की दलील पर टीम के एक सदस्य भड़क उठे। उन्होंने कहा कि ये तो नाले की स्थिति खुद बता रही है कि आप क्या कर रहे हो ?

दुधीचूआं के वाटर ट्रिटमेन्ट प्लान्ट पहुंचे टीम के सदस्यों ने फटी हुई पाइप लाइनों और जर्जर स्थिति को देखकर कहा कि ये तो बन्द पड़ा है। अधिकारियों ने दलील दी कि नहीं जैसे ही पानी खान से छुटता है यहां उसका ट्रिटमेन्ट होता है। 30 एमएलडी पानी का यहां ट्रिटमेन्ट किया जा रहा है। टीम सदस्यों ने कहा कि आप इस प्लान्ट से एक बून्द पानी भी बलिया नाले में मत डालो यहां के वाटर को स्टोर करो, आपके पास बहुत जगह है। इस पानी का इस्तेमाल सिंचाई और सड़कों पर छिड़काव में करो।

यदि वहीं दूसरी तरफ हम वायु प्रदूषण से सम्बन्धित हवा में पारे की मात्रा पर चर्चा करें तो पीपुल्स सांइस इंस्टीट्यूल देहरादून की टीम ने वर्ष-2009 में सोनांचल में प्रदूषण का सर्वे किया था जिसमें हवा में पारे की मात्रा का स्तर सामान्य से कई गुना अधिक पाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार रेणुसागर व अनपरा में हवा में पारे की मात्रा 337 से 1291 नैनोग्राम/घनमीटर, हिण्डाल्को में 168 से 743 नैनोग्राम/घनमीटर व सिंगरौली एरिया में 331 से 973 नैनोग्राम/घनमीटर पायी गयी थी। जबकि सुरक्षित सीमा 15 नैनोग्राम/घनमीटर है। इसी तरह जिले में मौजूद 9 तापीय परियोजना से निकलने वाले फ्लाई ऐश में पारे की मात्रा 2 से 4 पीपीएम, आर्सेनिक 434 पीपीएम व लेड 56 पीपीएम मिला था। यदि हम जानकारों की बात मानें तो उनका कहना था कि आने वाले पांच सालों में हालात और बिगड़ेगे।

पर्यावरण की समस्या को लेकर चिन्तित भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता अमित कुमार जो पर्यावरण और आदिवासियों के संरक्षण के लिये कार्य कर रहे हैं उनका कहना है कि – ‘सोनभद्र के विकास के नाम पर आदिवासियों को विस्थापित किया गया और उनके जो पानी पीने के स्रोत नदियां हैं, पाॅवर प्लान्टों से निकलने वाला पारायुक्त कचरा नदियों में छोड़ा जा रहा है जिससे नदियों के किनारे बसे आदिवासी गांव कई रोगों के शिकार हो रहे हैं। और दूसरी तरफ परियोजनाओं के आला अधिकारी एनजीटी के आदेश को अपने आॅफिस के डस्टबीन में डाल दिये हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एनजीटी को चाहिये कि आदेश की अवहेलना करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करें।

राजनैतिक पार्टियों के नेतागण पर्यावरण जैसे विशेष व अतिसंवेदनशील मुद्दे पर अपनी जवाबदेही से बचते हैं और एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण करते हैं, कुछ गिने चुने पत्रकारों को छोड़ दिया जाये तो बाकी पत्रकार सरकारी महकमें और इण्डस्ट्रीयल बेल्ट के अधिकारियों के बीच दलालों का काम करते हैं। जिसका प्रतिफल यह निकला कि पूरा सोनभद्र प्रदूषण की भयावह चपेट में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार गम्भीर मुद्दों पर दखल देने के लिये जानी जाती है। परन्तु सोनभद्र में पर्यावरण जैसे गम्भीर मुद्दों पर चुप क्यों है ? जबकि दो वर्षों तक मानवाधिकार आयोग की टीम ने कलेक्ट्रेट सभागार में बैठक कर यहां के प्रदूषण पर विचार-विमर्श किया लेकिन दिल्ली जाते ही उसे डस्टबीन में डाल दिया। जबकि दिल्ली से आयी टीम ने भी माना था कि यहां पर प्रदूषण काफी तेजी से बढ़ रहा है, ऐसा जान पड़ता है कि मानवाधिकार की टीम सोनभद्र में सिर्फ हाॅनीमून मनाने के उद्देश्य से आयी थी।