जीत मिली पर बहुत कुर्बानियों के बाद

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222हमारे सुरक्षित कल के लिए देश के जवानों ने अपनी कुर्बानी दे दी। अपनी बहादुरी का जौहर दिखते हुए विषम परिस्थितियों में भी उनके कदम नहीं डिगे। 26 जुलाई को करगिल विजय के 15 साल पूरे हो गए हैं। ठीक पंद्रह साल पहले भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को धूल चटाई थी। हमारे विशेष प्रतिनिधि पंकज कुमार को कारगिल जंग की दासतां सुनाई हवलदार रमा शंकर विश्वकर्मा ने।

26 जुलाई को कारगिल विजय को 15 साल पूरे हो गए हैं। आज से ठीक पंद्रह साल पहले कारगिल पहाडि़यों के बीच भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त देते हुए धूल चटा दी थी। हजारों जाबांज भारतीय जवानों के साथ दुश्मनों से मुकाबले में शामिल होने वाले उन जवानों में से हवलदार रमा शंकर विश्वकर्मा भी एक हैं, जिन्हांेने कारगिल जंग में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका दी। विश्वकर्मा बताते है कि कारगिल में हमको विजय मिली, दुश्मन सेना को मॅंुह की खानी पड़ी लेकिन इस जंग में हमारी सेना कों सैकड़ों जवानों की कुर्बानी देनी पड़ी।

पता चला कारगिल में दुश्मन सेना ने चढ़ाई की है
रमा शंकर विश्वकर्मा ने एक बार फिर उन दिनों को याद किया। विश्वकर्मा बताते हैं राजस्थान के सूरतगढ़ में 28 एअर डिफेंस रेजीमेंट की 959 एडी (एअर डिफेंस वर्कशाॅप) में पोस्टिंग थी। पाकिस्तान से जंग की शुरूआत की सूचना मिली। हम लोगों को बाड़मेंर की लोकशन पर तैनाती का आॅर्डर मिला था यहां तैनाती के तकरीबन 15 दिन बाद ही पता चला कारगिल में दुश्मन सेना ने चढ़ाई की है और भारतीय सेना उनसे मुकाबला कर रही है। हमको कारगिल जाने का आदेश हुआ। हमारे कमांडिंग आॅफिसर सुधीर कुमार ने किसी भी दिक्कत परेशानी की पूंछ-तांछ की परन्तु हम देश के लिए कुर्बान होने के जज्बे और जुनून के साथ कारगिल जाने को तैयार थे। इसी के साथ श्रीनगर के लिए हमारी रवानगी हुई और वहां से कारगिल के लिए कूंच किया।

धमाकों के बीच खौफनाक सन्नाटा
गोलियों और बम धमाकों की आवाज के बीच हमारी टुकडी करगिल पहुंची। इस वक्त तक कारगिल में जंग अपने चरम पर थी। यहां परा इलाका दिन हो रात धमाके की आवाज से गूंज रहा था। आसपास के गांवों में एक खौफनाक सन्नाटा पसरा रहता था। गांव में दुश्मनों की टोह के लिए कांबिग की जाती थी। यहंा से हमारी डेट(जवानों की टुकडी़) द्रास सेक्टर की ओर बढ़ी पास ही मुगलपुरा में भारी  भारी गोलाबारी हुई इस दौरान हमारी ओर से भी जबावी कार्यवाही की जा रहीं थी।

चढ़ाई के साथ आॅक्सीजन की कमी बनी मुसीबत
पहाडियों की ऊंचाई अधिक थी। चढ़ाई के दौरान आॅक्सीजन की कमी के कारण सांस लेने में तकलीफ महसूस होती थी। भारी बर्फ पड़ती थी। इस कारण भूख भी नहीं लगती थी। ऐसे में किसी तरह अपने को स्वस्थ रखने के लिए आहार लिया जाता था। इस बीच हमारी सेना के जवानों में जज्बे को लेकर कोई कमी नहीं थी और लगातार दुश्मन से मुकाबले के लिए आगे कदम बढ़ाते रहे।

बोफोर्स बनी हमारी फोर्स की ताकत
द्रास सेक्टर में हम पहाडियों के नीचे थे दुश्मन ऊपर से हमला कर रहा था ऐसे में हमारी बंदूकें नाकाम सबित हो रही थी। हमारी सेना मुश्किल दौर से गुजर रही थी। एअर फोर्स भी इस इलाके में कामयाब नहीं थी। ऐसे में बोफोर्स तोप ने ही सेना को ताकत दी। टाईगर हिल जैसे ऊंची पहाडियों पर पाकिस्तानी सेना ने पक्के बंकर बना रखे थे बोफोर्स द्वारा ही हमारी सेना ने दुश्मनों के बंकरो को नेश्तनाबूत कर दिया था। इस तोप ने ही ही द्रास सेक्टर की हर पहाड़ी में छिपे दुश्मन पर निशाना लगाया था।

जब दुश्मन ने हमारी गाड़ी को बनाया निशाना
हम थ्री टन गाड़ी के साथ पहाड़ी के किनारे रास्ते से जा रहे थे। उस वक्त दोपहर का समय था। उसी वक्त हमारी गाड़ी को निशाना बनाते हुए पाकिस्तानी फौज ने एक गोला दागा। ये गोला हमारी गाड़ी के ठीक आगे गिरा। ड्राईवर हड़बड़ा गया। शायद किश्मत अच्छी थी गाड़ी का बैलेंस नहीं बिगड़ा अन्यथा हम सैकड़ों फिट गहरी खाई में समा चुके होते। समझ आया यहां पाक फौज हर मूवमेंट पर नजर रख रहे थे। लेकिन पूरी मुस्तैदी के साथ आगे बढ़ते गऐ।

दिल दहल गया जब अपने जवानों को मरता देखा
उस समय दिल दहल गया था साथ ही जहन में गुस्सा फूंट रहा था जब अपने ही साथी जवानों को आंखें के सामने मरते देखा था। हम धमाकों के बीच खाना खा रहे थे तभी एक मोर्टार हमारे पास आकर गिरा। वह फटा नहीं था साथी जवान ने पास जाकर मोर्टार उठाना चाहा तभी वह फट गया और साथी शहीद हो गया। ऐसा मंजर लगातार देखने को मिल रहा था। गम्भीर घायलों को हैलीकाॅप्टर से उपचार के लिए भेजा जा रहा था। जिसे देखते ही दिल दहल गया था साथ ही जहन में गुस्सा फूंट रहा था। इसी गुस्से के साथ जज्बे ने साथी जवानों ने दुश्मन के प्रति जहन में आग लगा दी थी।

111ऐसा था हमारी फौज का जज्बा
सेना में जंग जीतने का जज्बा कुछ ऐसा था जूनियर ऑफिसर अपने सीनियरों से लड़ाई की मुख्य जगह पर जाने की जिद करते रहते थे। एक अफसर ने तो जिद ठान ली कि पहाड़ी को दुश्मनों के कब्जे से छुड़ाकर ही दम लूंगा। ऐसा था हमारी फौज का जज्बा। टाइगर हिल की लड़ाई सबसे निर्णायक थी क्योंकि वो द्रास सेक्टर का सबसे ऊंचा और अहम प्वाइंट था, जहां पाकिस्तान कब्जा कर चुका था। यहां से पाकिस्तान को हटाने का मतलब था कि द्रास के सबसे ऊंचे प्वाइंट पर एक बार फिर भारतीय कब्जा। सेना के लिहाज से टाइगर हिल फतह करना सबसे बड़ी चुनौती थी।

तिरंगा टाइगर हिल पर लहराने के लिए तैयार था
टाइगर हिल की लड़ाई पूरे जोर पर चल रही थी । मिल रही सूचनाओं से पता चल रहा था कि टाइगर हिल पर कभी भी हमारा कब्जा हो सकता है। तिरंगा टाइगर हिल पर लहराने के लिए तैयार था। ये वो वक्त था जब गोलियों और धमाके की आवाज से पूरा इलाका लगातार गूंज रहा था। हम सबके चेहरे खिले हुए थे। पूरा इलाका भारत माता की जय के नारों से गूंज रहा था। और अखिर हमने टाईगर हिल फतेह कर लिया।  टाइगर हिल जाने के बाद पाकिस्तान फौज को लग चुका था कि सौदा महंगा पड़ा। पाकिस्तान के हौसले पस्त हो चुके थे। एक-एक करके भारतीय सेना उसे खदेड़ती जा रही थी। सैकडों जवानों की कुर्बानियांे ने अखिर हमारी विजय लिख दी।