धर्म निरपेक्षता एक हथियार किसी पर वार

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ssssभारत परिषद अधिनियम 1909 में मुसलमानों को अलग प्रतिनिधित्व मिल गया लीग ने मुसलमानों को अलग राष्ट्र बताया। संप्रदायिकता से आक्रमता बढ़ी  देश बट गया। लेकिन आज आधुनिक राजनीति के सियासत में हमारे देश के वर्तमान हुक्मदारों द्वारा अपनी सत्ता-सियासत के लोभ में इनके द्वारा तीसरे भारत के निर्माण का बीज रोपा जा रहा है।

हमारे देश की कुछ राजनीतिक सत्तासीन पार्टीयां अपने सत्ता के सियासत के लिए सामप्रदायिकता का कार्ड खेल रही है। आज कल करीब-करीब सभी राजनीतिक पार्टियों का अपना-अपना जातीय आधार के साथ-साथ वोट बैंक के लिए धर्म विशेष के तुष्टीकरण करने से भी नही बचते। आज वर्तमान परिवेश में हम वोट बैंक के संदर्भ में राजनीतिक दलों का अध्ययन करेंगे। तो पायेंगे कि कहीं न कहीं हमारे देश के अधिकांश पार्टियां हर समय (चुनाव के पहले) अपने वोट के लिए तुष्टीकरण का नया-नया प्रयोग करती रहती है।

जैसे बिहार में लालू का समीकरण सामान्यतः माई (मुस्लिम यादव) था। लेकिन अब राजपूत के साथ-साथ अन्य स्वर्ण जातियों को जोड़कर अपनी चुनावी नैया पार लगाना चाहती है। इसी तरह नीतिश कुमार के साथ अति पिछड़ा समीकरण के साथ-साथ मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष रिझाने के लिए कोई न कोई प्रलोभन और उनके लिए सुनियोजित ढंग से योजनाओं को सरकारी स्तर पर लाना, भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ना आदि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी द्वारा अपने वोट बैंक के सियासत के लिए अनैतिक तरीकों से रह रहें बांग्लादेशी मुस्लिमों पर कोई कार्रवाई न करना। उसी तरह असम-त्रिपुरा आदि राज्यों में वोट की सियासत की राजनीति हो रही है।

आज हम देखें तो सत्ता सियासत के लिए एक धर्म विशेष का तुष्टीकरण का सबसे बड़ा राजनीतिक खेल उत्तर प्रदेश बन गया है। जहां वहां की सपा सरकार द्वारा धर्मनिरपेक्षता एवं संप्रदायिकता की परिभाषा बदली जा रही है। हमारे भारतीय संविधान में धर्म निरपेक्षता के बारे में कहा गया है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा।

राज्य किसी धर्म को न तो बढ़ावा देगा और नहीं उसका विरोध करेगा। लोगों की धार्मिक मान्यताओं के मामले में राज्य द्वारा किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा। लेकिन आज उत्तर प्रदेश में खासकर पश्चिमी यूपी में जिस प्रकार दो समुदायों के बीच खून की होली हो रही है उसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वहां के एक संप्रदाय विशेष (बहुसंख्यक) की भावनाओं एवं बातों को अपने राजनीतिक सियासत के लिए दबाया जा रहा है। क्या यही धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा है या अल्पसंख्यक संप्रदाय का तुष्टीकरण?

(1) हमारी टीम जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामने जिला में पहुंची तो मालूम चला कि उत्तरांखण्ड की एक लड़की जो शामली में आई हुई थी उसके साथ कुछ मुस्लिम युवकों द्वारा उसका बलात्कार किया गया। तो हिन्दू समुदाय ने घटना का विरोध करते हुए प्रशासन से शिकायत की लेकिन प्रशासन द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया।

(2) पुनः  जब हिन्दु समुदाय के अनुसूचित जाति के युवक जो सफाई कर्मी था उसको अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों द्वारा किसी बात को लेकर मारा गया। तब लोगों ने न्याय की मांग के लिए धरना प्रदर्शन किया तो तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक अब्दुल हमीद (शामली) द्वारा उन प्रर्दशन कारियों पर बुरी तरह से लाठी चार्ज करवाया गया। इसी दिन शामली शहर के किसी मुहले में एक बृद्ध मुस्लिम जो 65 वर्ष का था उसकी मौत हृदयघात से हो गई। मौत के बाद उसके ही अपने समुदाय के लोगों द्वारा गोली मारी गई। इस मामले में हत्या के आरोपी बताकर हिंदू समुदाय के कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

(3) जब हमारी टीम शामली जिला के लिलौन गांव में पहुंची तो वहां के लोगों द्वारा बताया गया कि जिस हिंदू समुदाय की लड़की के साथ मुस्लिम युवक समशेर द्वारा बलात्कार किया गया है। (यह युवक मूल रूप से कवाल के शहनवाज का रिश्तेदार था) इस मामले मंे प्रशासन द्वारा बलात्कार पीडि़ता का मुकदमा नहीं लिया जा रहा था जब लोगों द्वारा प्रशासन पर दबाव बनाया गया तब मुकदमा लिया गया।

जब हमारी टीम इस घटना की सच्चाई जानने पुलिस स्टेशन पहुंची तो एक आरक्षी (सिपाही) द्वारा नाम न छापने की शर्त पर बताया गया कि तत्कालीन एसपी साहब ने मुकदमा लेने से मना किया था क्यांेकि मुकदमा लेने से दंगा भड़क सकता है। जनता के ज्यादा दबाव देने पर एक सनहा लेने का आदेश थानाप्रभारी को दिया था। लोगों द्वारा ऐसा भी बताया गया कि तत्कालीन एसपी अपने जातीय समुदाय की बीच एक बयान दिया था कि (पहले मै मुसलमान हूं बाद में नौकरशाह जबकि कोई भी भारत का नागरिक एक अधिकारी के रूप में या सरकारी सेवक के रूप में संविधान के अतंर्गत सपथ लेता है कि धर्म निरपेक्षता एवं सामाजिक सदभाव को बनाए रखने के लिए संकल्प लेता है।) जबकि संविधान का इस तरह का उल्लंघन राष्ट्र के लिए बड़ा खतरा है।

बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अपना धु्रवीकरण करके लिलौन बलात्कार पीडि़ता का मुकदमा लेने के लिए थानाप्रभारी को बाध्य कर देना एवं अपने उचित न्याय के मांगों के लिए एक होना क्या उत्तर प्रदेश सरकार की नजर में यही संप्रदायिकता है? और अल्पसंख्यकों का गोलबंद होकर बहुसंख्यकों का घर जला देना, ईख के खेतों में आग लगा देना, और लड़कियों साथ छेड़छाड़ व रेप कर देना, सपा सरकार के शब्दकोश में यही धर्मनिरपेक्षता है?

शामली के तत्कालीन एसपी अब्दुल हमीद पर वहां के  लोगों द्वारा बराबर आरोप लगता रहा है कि वह हमेशा एक समुदाय विशेष का पक्ष करते हैं और दूसरे समुदाय विशेष के लोगों को परेशान करते है। फिर सपा सरकार इस तत्कालीन एसपी को शामली से हटाकर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को असंतुष्ट नहीं करना चाहती थी।

लोगों द्वारा ऐसा बताया गया है कि एसपी साहब को नहीं हटाने के पीछे सबसे बड़ा एक और मूल कारण एसपी साहब सपा के दबंग कबिना मंत्री आजम खां रिश्तेदार भी हैं। लेकिन शामली के जनता द्वारा पूरी तरह से शामली बाजार को 10 दिन बंद रखा गया। तब सरकार एसपी साहब को हटाने को मजबूर हुई।

प्रतापगढ़ जिले के तत्कालीन आरक्षी उपाध्यक्ष जियाउलहक की हत्या हुई तो उसमें सपा के मंत्री राजा भैया का नाम आया तो उन्हें तत्काल इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे में आज तक की स्टिंग आपरेशन में सपा के दबंग मंत्री आजम खां का नाम आया तो उन पर सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं होती है। क्या सपा सरकार की यहीं धर्मनिरपेक्षता है।

जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव दंगा पीडि़तों से मिलने मुजफ्फरनगर जाते है तो टोपी लगाकर धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा एवं वोट बैंक की राजनीति करना भी दुख की घडी में नहीं छोड़ते।

जनता ने जिस बहुमत एवं विश्वास से सपा को उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने खासकर युवा अखिलेश को राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया इस मौके पर जनता के बीच  उन्हें खरा उतरने के लिए विकाश, रोजगार, भुखमरी, गरीबी, मिटाने का रास्ता अखिलेश को चुनना चाहिए था। जिससे आने वाले सत्ता के सियासत के चुनाव में जनता के बीच अपने काम के आधारों पर वोट मांग सकते थे। लेकिन  अब अखिलेश जनता के बीच तुष्टीकरण और संप्रदायिकता के आग में जल रहे उत्तर प्रदेश के विकास को लेकर जाएयें।

हमारे देश के राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षकता और संप्रदायिकता की परिभाषा न बदलें और तुष्टीकरण की नीति से बचे नहीं तो वह दिन दूर नही जब हम एक तीसरे भारत का निर्माण होते हुए देखेंगे।