जानिए, मंदिरों का रखवाला भी था औरंगजेब, बनारस के हिंदुओं को परेशान न करने का दिया था आदेश

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नई दिल्ली : मुगल बादशाह औरंगजेब अक्सर दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहते हैं। दक्षिणपंथी संगठन और विचारक औरंगजेब पर भारत में उसके 49 साल के शासन के दौरान हिंदुओं पर जुल्म करने और मंदिरों को तोड़ने का आरोप लगाते हैं। लेकिन अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की इतिहासकर ऑड्री ट्रश्चकी की मानें तो औरंगजेब ने जितने मंदिर तुड़वाए थे उससे कहीं ज्यादा मंदिरों और हिंदू संतों को बचाया था। मुगल इतिहास की विशेषज्ञ ऑड्री “औरंगजेब: द मैन एंड द मिथ” किताब की लेखिका हैं।

ऑड्री के अनुसार औरंगजेब हिंदुओं को “दिम्मी” मानता था। इस्लामिक कानून के अनुसार दिम्मी मुस्लिम शासन में रहने वाले गैर-मुसलमानों को कहा जाता है जिन्हें शासन द्वारा निश्चित सुरक्षा और अधिकार प्राप्त होते हैं। ऑड्री के अनुसार हिंदू और जैन मंदिरों की रक्षा के मामले में औरंगजेब इस्लामिक कानून की दी गयी सीमा से आगे जाकर उनकी रक्षा करता था। उसने कई मंदिरों का निर्माण भी कराया था। दूसरे मुगल शासकों की तरह औरंगजेब हिंदू पूजास्थलों को नुकसान न पहुंचाने की नीति पर अमल करता था लेकिन जो धार्मिक संस्थान या नेता उसे सत्ता विरोधी या अनैतिक लगते थे उनका वो कठोरता से दमन करता था।

ऑड्री की किताब के अनुसार औरंगजेब ने राजपूत राजा राणा राज सिंह को फारसी में भेजे पत्र में मंदिरों और दूसरे गैर-मुस्लिम धार्मिक स्थलों के बारे में अपनी नीति साफ की थी। 1654 में भेजे गए इस पत्र में उसने लिखा था, “क्योंकि महान राजा ईश्वर की छाया होता है, इसलिए इस आला दर्जे को लोगों, जो ईश्वरीय दरबार के स्तम्भ हैं, का ध्यान इस बात पर रहता है कि विभिन्न चरित्र और मजहबों के लोग शांति और समृद्धि के साथ जीवन बिता सकें और किसी को उनकी जिंदगी में दखल नहीं देना चाहिए।” इसी पत्र में औरंगजेब ने ईश्वर की संतानों और धार्मिक संस्थानों को नुकसान पहुंचाने वालों राजाओं की कड़ी आलोचना की है। औरंगजेब ने लिखा है कि बादशाह बनने के बाद वो ऐसी गैर-इस्लामिक रवायतों को बंद करा देगा और अपने महान पूर्वजों की रवायतों को लागू करेगा। ये पत्र लिखने के चार साल बाद 1658 में औरंगजेब बादशाह बना था।

औरंगजेब पर जिन प्रमुख हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुंचाने का आरोप अक्सर लगता है उनमें काशी विश्वनाथ मंदिर एक है। ऑड्री की किताब के अनुसार बादशाह बनने के बाद औरंगजेब ने फरवरी 1659 में शाही आदेश जारी करके बनारस के मंदिरों के मामलों में दखलंदाजी न देने की ताकीद की थी। इस आदेश में लिखा था कि “बहुत से लोग नफरत और जलन के कारण बनारस और आसपास के इलाकों के हिंदुओं जिनमें प्राचीन मंदिर कि देखरेख करने वाला ब्राह्मण समूह भी है, को तंग करते हैं।…. बादशाह अपने मातहतों को आदेश देते हैं कि कोई भी व्यक्ति गैर-कानूनी तरीके से बनारस या आसपास के किसी हिंदू को तंग न करे ताकि वो अपने परंपारगत स्थान पर रह सकें और मुगल सल्तनत की सलामती के लिए दुआ कर सकें।” बनारस के फरमान के बाद औरंगजेब ने कई अन्य जगहों पर ऐसे ही आदेश भेजे जिसमें हिंदुओं को मुगल सल्तनत की सलामती की दुआ के लिए अकेले छोड़ देने की बात कही गई।

औरंगजेब ने गद्दी संभालने के नौवें साल में असम के गुवाहाटी स्थित उमानंद मंदिर जमीन और मालगुजारी वसूलने का अधिकार दिया था। 1680 में उसने आदेश दिया कि बनारस में गंगा घाट पर रहने वाले भागवंत गोसाईं को तंग न किया जाए। 1687 में औरंगजेब ने बनारस में रामजीवन गोसाईं नामक साधू को मंदिर बनाने के लिए जमीन दी थी। ये जमीन एक मस्जिद के पास ही स्थित थी। 1691 में औरंगजेब ने चित्रकूट के महंत बालक दास निर्वाणी को आठ गांव और कर मुक्त जमीन दी थी। 1698 में उसने रंग भट्ट नामक ब्राह्मण को कर मुक्त जमीन दी थी। इसी तरह उसने इलाहाबाद, वृंदावन, बिहार एवं अन्य जगहों पर भी हिंदू संतों और मंदिरों को जमीन एवं अन्य चीजें दी थीं।

(ऑड्री ट्रश्च्की की किताब “औरंगजेब: द मैन एंड द मिथ” वाइकिंग, पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया से प्रकाशित है।)