टाइफाइड: रोग, लक्षण व उपचार

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typhoidभारत जैसे विकासशील देशों में टाइफाइड एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। टाइफाइड साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु से होने वाला संक्रामक रोग है। हालांकि बच्चों को वयस्कों की तुलना में टाइफाइड होने की अधिक संभावना होती है, लेकिन वयस्कों में इसके लेक्षण बदतर हो सकते हैं। टाइफाइड के लिए जोखिम वाले कारकों में शामिल हैं उन क्षेत्रों में काम करना या यात्रा करना जहां यह बीमारी या गलत जीवन-शैली के कारण शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र का कमजोर होना और पीने जीवाणु से प्रदूषिण हो। ये सभी कारण टाइफाइड होने की आशंका को बढ़ा देते है।

कारणः
टाइफाइड सबसे अधिक मुंह के जरिये खाने-पीने की ऐसी प्रदूषित वस्तुओं से फैलता है, जिसमें साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु मौजूद हो। यदि टाइफाइड का रोगी बाथरूम का उपयोग करने के बाद अपने हाथों को कीटाणुनाशक साबुन से नहीं धोता और उन्हीं हाथों से खाने-पीने की व अन्य वस्तुओं को स्पर्श करता है, यदि इस स्थिति में कोई दूसरा स्वस्थ व्यक्ति उन्हीं वस्तुओं को छूकर साबुन से हाथ धोए बगैर कोई खाद्य पदार्थ ग्रहण करता है तो वह भी टाइफाइड के बैक्टीरिया से सक्रमित हो सकता है।

लक्षणः
टाइफाइड से ग्रस्त रोगियों को अक्सर 103 या 104 डिग्री फॉरेनहाइट या फिर (39-40 डिग्री सेल्सियस) तक बुखार चढ़ सकता है। इस स्थिति के अतिरिक्त रोग के कुछ प्रारंभिक लक्षण ये हैं:-
1. सिरदर्द व बदन दर्द
2. भूख में कमी
3. सुस्ती, कमजोरी और थकान
4. दस्त होना
5. सीने के निचले भाग और पेट के ऊपरी भाग पर गुलाबी या लाल रंग के धब्बे (रैशेस) दिखना। टाइफाइड का समुचित इलाज नहीं कराने पर व्यक्ति बेहोश हो सकता है और अपनी आँखें आधी बंद कर बिना हिले-डुले पड़ा रह सकता है। बीमारी के दूसरे या तीसरे सप्ताह के दौरान रोगी में धीरे-धीरे सुधार आना शुरू होता है।

रोग जांचनाः
चिकित्सक विशेष रूप से साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया की पहचान करने के लिए मल का कल्वर या रक्त का कल्चर परीक्षण कराने की सलाह देते हैं। टाइफाइड बुखार की पहचान के लिए किये जाने वाले अन्य परीक्षणों में एंजाइम से संबंधित इम्यूनोसोर्बेन्ट एम्से (एलिसा) और फ्लोरोसेंट एंटीबॉडी परीक्षण शामिल हैं।

उपचारः
टाइफाइड पैदा करने वाले साल्मोनेला बैकटीरिया को एंटीबॉयोटिक दवाओं से खत्म किया जाता है। हालांकि कुछ मामलों में लंबे समय तक एंटीबॉयटिक दवाओं के इस्तेमाल से टाइफाइड के जीवाणु एंटीबॉयोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी (रेजिस्टेंट) हो जाते हैं। इस स्थिति से बचने के लिए योग्य डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही चिकित्सा कराएं।

टाइफाइड की स्थिति में रोगी के शरीर में पानी की कमी न होने पाए, इसके लिए पीडि़त व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में पानी और पोषक तरल पदार्थ लेना चाहिए।