एलर्जी की समस्या, लक्षण और उपचार

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Allergiesएलर्जी एक ऐसी बीमारी है जो आमतौर पर कभी साथ नहीं छोड़ती। लेकिन एलर्जी के कारणों को समझकर उनके मुताबिक सावधानी बरतें तो यह बीमारी आपको नहीं सताएगी और आप सामान्य जीवन जी पाएंगे। एलर्जी या अतिसंवेदनशीलता प्रतिरक्षा प्रणाली के एक आम विकार है, पूरी आबादी का लगभग एक चौथाई को प्रभावित करता है। एलर्जी तब होती है, यह जब शरीर किसी पदार्थ के प्रति प्रतिक्रिया करता है। वह पदार्थ जिसके कारणप्रतिक्रिया होती है, उसे एलर्जन कहा जाता है।

एलर्जी के विभिन्न प्रकार होते हैं। सामान्य रूप से एलर्जी इन कारणों से उत्पन्न होती है-

1. हवा में मौजूद धुंआ, गर्दा और फूलों के पराग कण आदि।

2. कुछ लागों में दूध, रसायनों या फिर कुछ दवाओं के सेवन से।

3. कीड़ों के डंक जैसे बर्र, मधुमक्खी या चीटे के काटने आदि से।

लक्षण
1. नाक में खुजली , नाक का बहना या बंद होना।

2. गले में खुजली होना या खांसी आना।

3. छीकना, खांसना और कभी-कभी अस्थमा या दमा दौरा पड़ना।

4. आंखों में खुजली, लाली, सूजन, जलन या पानी सरीखा द्रव बहना।

5. त्वचा पर लाली पड़ना और खुजली होना।

6. कान में तकलीफ होने पर सुनने की क्षमता में कमी आना।

7. सिरदर्द, मितली या उल्टी, पेट में दर्द व मरोड़ होना। दस्त होना।

8. मुंह के आसपास सूजन या निगलने कठिनाई।

9. रक्त का दबाव कम हो जाना।

10. श्वास मार्ग अवरूद्घ हो जाना।

11. ढोड़ी पर मकड़ी के छत्ते बन जाना।

12. पलकों और नाक की त्वचा का लाल हो जानाए सूज जाना और उसमें खुजली होना।

13. जिन लोगों को पहले से ही अस्थमा है, बिल्ली के संपर्क में आने पर उनमें अस्थमा के अटैक का खतरा 20-30 प्रतिशत बढ़ जाता है।

एलर्जीक कन्जंक्टिवाइटिसः यह आमतौर पर पाया जाने वाला एलर्जी का एक प्रकार है। यह समस्या धूल, धुएं, कॉटैक्ट लेंस व सौंदर्य प्रसाधन से संबंधित वस्तुओं के इस्तेमाल से उत्पन्न हो सकती है। इसमें आमतौर पर आंखों मे लाली, जलन व खुजली महसूस होती है।

त्वचा की एलर्जीः त्वचा की एलर्जी सबसे आम समस्याओं में से एक है। इसमें एग्जिमा व अरटीकेरिया नामक रोग प्रमुख है। एग्जिमा आमतौर पर बचपन में होता है किन्तु वयस्क अवस्था तक जारी रह सकता है। त्वचा पर लाल चकत्ते उभर आते हैं। एलर्जी का यह प्रकार अक्सर अज्ञात कारणों से उत्पन्न होता है।

फूड एलर्जीः किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी की शिकायत होना फूड एलर्जी का सूचक है। एलर्जी से संबंधित शिकायतों का निदान व उसका उपचार आवश्यक है।

डायग्नोसिस
त्वचा परीक्षणः एलर्जी उत्पन्न करने वाले तत्वों की पहचान के लिए यह परीक्षण किया जाता है।

रक्त परीक्षणः यह रक्त विशिष्ट ’एंटीबॉडीज’ की पहचान के लिए किया जाता है।

मौसमी और सामान्य एलर्जी से बचने के उपाय:
1. घर में अधिक से अधिक खुली हवा आने दें।

2. बरसात में घर और उसके आसपास गंदगी न पनपने दें।

3. अगर एयर कंडीशनर का प्रयोग करेंए तो यह सुनिश्चित करें कि कमरे में आद्र्रता कम हो और फिल्टर  थोड़े.थोड़े समय बाद बदलते रहें।

4. साफ.सफाई का विशेष ख्याल रखें। घर में कहीं भी धूल इकट्ठी न होने दें।

5. किताबों की आलमारियों की समय.समय पर सफाई करते रहें।

6. घर में लकड़ी का फर्नीचर हो तो उसकी सफाई का विशेष ख्याल रखें। उसमें दीमक न लगने दें।

7. महीने में कम से कम एक बार पलंग के गद्दे वगैरह हटाकर अच्छी तरह सफाई जरूर करें।

8. घर में कूड़ा.कचरा न इकट्ठा करें।

9. गंदे कपड़ों को ज्यादा समय तक न रखें।

 उपचारः
1. डॉक्टर की सलाह से कई एलर्जी रोधक दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे मोन्टेल्यूकास्ट         तत्व ये युक्त दवा आदि।

2. इम्यूनोथेरेपी के माध्यम से व्यक्ति में धीरे-धीरे किंतु अधिक मात्रा में एलर्जन पहुंचाया जाता है।

3. एलर्जी का स्थायी उपचार तो नहीं हैए लेकिन जिन चीजों से आपको एलर्जी हो उनसे बचा जाए तो आप पूरी तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं।

4. कुछ लोगों को पालतू जानवरों से एलर्जी होती है। डॉक्टर के सख्त निर्देश के बावजूद वे अपने पालतू जानवरों को घर से बाहर नहीं करते। ऐसे लोग अपने पालतू जानवर को घर से निकाल दें तो उन्हें एलर्जी नहीं होती। 

5. जिन्हें धूल से एलर्जी होती है वे बिना अपनी नाक को ढंके ही बाहर निकल जाते हैं। यही सबसे प्रमुख कारण होता है कि लोगों की एलर्जी ठीक नहीं हो पाती।

6. काफी लोग एलर्जी की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते। कुछ लोग ठीक समय पर दवाएं नहीं लेते हैं। इससे भी समस्या बढ़ती जाती है।

7. आजकल दिल्ली में कई फाइव स्टार होटलों के मेन्यू में उसके इंग्रेडिएंट्स दिए जाते हैं ताकि जिन लोगों को जिन चीजों से एलर्जी होए उनसे परहेज करें। जब भी आप घर से बाहर खाना खाएं तो उसके सारे इंग्रेडिएंट्स चेक कर लें।

8. जिन लोगों को लैक्टोस से एलर्जी है वे डेयरी प्रोडक्ट की जगह सोया मिल्क ले सकते हैं। फूड एलर्जी का सबसे बेहतरीन इलाज है कि उस खाद्य पदार्थ को न खाया जाए। एलर्जन से बचना पेट एलर्जी का सबसे बेहतर उपचार है।

9. घर में पालतू जानवर न रखें। अगर पालतू जानवर के बिना रहना संभव न हो तो एलर्जी के लक्षणों से बचने के लिए अपने लिए एंटी हिस्टामिन गोलियों और नैजल स्प्रे का उपयोग करें।

10. अस्थमा के उपचार के लिए ली जाने वाली कई दवाएं भी पेट एलर्जी में काफी उपयोगी हैं। पर इन्हें डॉक्टर की सलाह पर ही लें। इम्युनो थेरेपी पेट एलर्जी का सबसे कारगर उपचार माना जाता है लेकिन यह एलर्जी का उपचार करता है, उसके लक्षणों का नहीं। हालांकि यह काफी मंहगी पद्धति है और इसमें समय भी अधिक लगता है। हर किसी को इससे फायदा भी नहीं होता। फिर भी इसे सुरक्षित माना जाता है। इसमें एलर्जन के डोज दिए जाते हैं जिन्हें एलर्जी शट कहते हैं। शुरुआत में प्रति सप्ताह एक या दो शट लेने पड़ते हैं। धीरे.धीरे इनकी संख्या घटकर महीने में एक हो जाती है।

11. हेयर डाई के साइड इफेक्ट के बावजूद इसका प्रचलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसलिए इसका उपयोग करने के बाद जरूरी है कि उन संकेतों और लक्षणों को पहचानें जो इसका उपयोग करने के बाद दिखाई देते हैं। हेयर डाई करने के बाद बालों और स्कल्प को अच्छी तरह साफ पानी से धो लें।

एलर्जी से छुटकारा पाने का प्रकृतिक उपायः
एलर्जी रोग से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर शोध करने वाले एक विशेषज्ञ चिकित्सक का कहना है कि इस रोग से बचाव का सबसे कारगर तरीका प्राकृतिक उपचार हैं और इनके जरिए किसी मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

एलर्जी को लेकर दो दशक से शोध कर रहे एक चिकित्सकों का दावा है कि एलर्जी से बचाव के लिए पश्चिमी देशों की तरह इलाज करने की अवधारणा गलत साबित हुयी है। यही वजह है कि यूरोप और अन्य विकसित देशों में 50 वर्षों के दौरान इस रोग से पीड़ितों की संख्या में लगभग एक सौ गुना बढोत्तरी हुयी है। उन्होंने एलर्जी को लेकर विभिन्न संस्थाओं के हवाले से कहा कि इस समय यूरोप और अमरीकी देशों में लगभग 50 करोड़ व्यक्ति एलर्जी से परेशान हैं।

नाक, कान और गला (ईएनटी) रोग विशेषज्ञ का कहना है उन्होंने अपने शोध के दौरान दो से 12 वर्ष की आयु के लगभग तीस बच्चों पर परीक्षण किए। उन्होंने इन बच्चों को प्राकृतिक तरीके से उपचार के मद्देनजर धूल, पराग, कण और पालतू जानवरों आदि के संपर्क में रहने दिया।

लगातार ऐसा करने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हुयी और फिर उन्हें एलर्जी ने कभी परेशान नहीं किया। उनका मानना है कि बचपन में बच्चों को धूल, परागएकणों और पालतू जानवरों के संपर्क में आने देना चाहिए इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढेगी और वह भविष्य में भी स्वस्थ रहेंगे।