सांप्रदायिक हिंसा का शिकार होता बिहार

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अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस प्रकाशित खबर के मुताबिक़ बिहार में बीजेपी और जदयू के तलाक के बाद सूबे में सांप्रदायिक दंगों बहुत वृद्धि हुई है। जून 2013 के बाद बिहार में 170 सांप्रदायिक घटनाएं हुई है। महीने में हिंसा की 10 से ज्यादा घटनाएं सामने आ रही है, जबकि बीजेपी-जदयू के गठजोड़ के समय यह संख्या औसत रूप से महीनेवार 3-4 घटनाओं की थी

पिछले महीने भोजपुर जिला प्रशासन ने आरा में एक ऐसी घटना को रोकने में कामयाबी हासिल की थी। यहां मूर्ति विसर्जन को लेकर दो पक्षों में हिंसा शुरू हो गई थी। इस घटना में तीन पुलिस वालों के साथ दर्जन भर से ज्यादा लोग घायल हुए। इससे पहले की स्थिति कंट्रोल में आती सड़क किनारे स्थित पांच दुकानें आग के हवाले कर दी गई।

औरंगाबाद में एक देवी प्रतिमा को लेकर दो पक्षों के बीच हुई पत्थरबाजी की घटना में मंगलवार को एक सहायक पुलिस कांस्टेबल घायल हो गया।

खबरों के मुताबिक सूबे में कुछ सांप्रदायिक घटनाओं को समुदायिक हस्तक्षेप के जरिए सुलझा लिया गया। इसके साथ ही 70 छोटे मामलों में पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। इन घटनाओं में 25 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हो चुके हैं और उन्हें बेल पर रिहा किया गया है।

सांप्रदायिक दंगों की इस बाढ़ में सबसे भीषण घटना अगस्त 2013 में नवादा जिले में हुई। जहां हिंदू-मुस्लिम समुदाय के बीच हिंसा में बजरंग दल के एक कार्यकर्ता के साथ तीन लोग मारे गए।

जदयू और बीजेपी के 17 साल पुराने गठजोड़ के टूटने के बाद बाद तकरीबन तीन दर्जन से ज्यादा लोग सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में घायल हुए हैं। वही, नीतीश कुमार की जगह मुख्यमंत्री बने जीतन राम मांझी के शासनकाल में सांप्रदायिक हिंसा की 38 घटनाएं सामने आई है।
सितंबर महीने में हिंसा की सबसे ज्यादा दस घटनाएं हुई। जून 2013 के बाद यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। किशनगंज, सारन और भोजपुर में हिंसा की बड़ी घटनाएं हुई। किशनगंज में एक मंदिर के पास गाय का सिर मिलने के बाद दो दिन तक निषेधात्मक आदेश लागू रहे। जबकि सारण में मूर्ति विसर्जन को लेकर सांप्रदायिक हिंसा की लपटें भड़क उठीं।

सांप्रदायिक हिंसा की बढ़ती घटनाओं से साफ है कि बीजेपी से अलग होने के बाद जेडीयू राज्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में नाकाम रही है। वहीं, बीजेपी नेताओं ने अपने लोगों को जमीनी स्तर पर काम करने का आदेश जारी किया है।
बिहार पुलिस सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं का अलग से रिकॉर्ड नहीं रखती। ऐसी घटनाओं को दंगा सूची में जगह देती है, जो जाति और धर्म की हिंसा से जुड़े होते हैं।

यहाँ सोचने वाली बात तो यह है कि नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए सरकार के दौर में सांप्रदायिक हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई।